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साँसों में दर्द भरा है/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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रचनाकाल : 2005

साँसों में दर्द भरा है
आज हर मंज़र हरा है

वह पहली नज़र से मेरे
शीश:-ए-दिल में ठहरा है

हर-सू, हर शै में वह है
और उसी का चेहरा है

मेरा दर्द सिमटता नहीं
हाले-दिल बहुत बुरा है

अंधेरों की आदत नहीं
सो जुगनुओं का पहरा है

'नज़र' वह पसंद है मुझे
उसका दिल भी गहरा है