Last modified on 5 मई 2008, at 01:06

साँस अभी है / मोहन राणा

रात के अंधेरे में दिन के बारे में सोच

आश्वस्त करता हूँ अपने आप को,

अपनी पिछली कविता पढ़

एक लम्बी साँस लेता,

हवा कहीं दूर भीतर चली जाती है भीतर

साँस अभी है

26.12.1995