"साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा | साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा | ||
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क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई! | क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई! | ||
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तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती | तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती | ||
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दूधिया चाँदनी साँवली हो गई! | दूधिया चाँदनी साँवली हो गई! | ||
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खेल खेली खुली, मंजरी से मिली | खेल खेली खुली, मंजरी से मिली | ||
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यों कली बेकली की छटा हो गई | यों कली बेकली की छटा हो गई | ||
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वृक्ष की बाँह से छाँह आई उतर | वृक्ष की बाँह से छाँह आई उतर | ||
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खेलते फूल पर वह घटा हो गई। | खेलते फूल पर वह घटा हो गई। | ||
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वृत्त लड़ियाँ बना, वे चटकती हुई | वृत्त लड़ियाँ बना, वे चटकती हुई | ||
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खूब चिड़ियाँ चली, शीश पै छा गई | खूब चिड़ियाँ चली, शीश पै छा गई | ||
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वे बिना रूप वाली, रसीली, शुभा | वे बिना रूप वाली, रसीली, शुभा | ||
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नन्दिता, वन्दिता, वायु को भा गई। | नन्दिता, वन्दिता, वायु को भा गई। | ||
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चूँ चहक चुपचपाई फुदक फूल पर | चूँ चहक चुपचपाई फुदक फूल पर | ||
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क्या कहा वृक्ष ने, ये समा क्यों गई | क्या कहा वृक्ष ने, ये समा क्यों गई | ||
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बोलती वृन्त पर ये कहाँ सो गई | बोलती वृन्त पर ये कहाँ सो गई | ||
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चुप रहीं तो भला प्यार को पा गई। | चुप रहीं तो भला प्यार को पा गई। | ||
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वह कहाँ बज उठी श्याम की बाँसुरी | वह कहाँ बज उठी श्याम की बाँसुरी | ||
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बोल के झूलने झूल लहरा उठी | बोल के झूलने झूल लहरा उठी | ||
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वह गगन, यह पवन, यह जलन, यह मिलन | वह गगन, यह पवन, यह जलन, यह मिलन | ||
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नेह की डाल से रागिनी गा उठी! | नेह की डाल से रागिनी गा उठी! | ||
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ये शिखर, ये अँगुलियाँ उठीं भूमि की | ये शिखर, ये अँगुलियाँ उठीं भूमि की | ||
क्या हुआ, किसलिए तिलमिलाने लगी | क्या हुआ, किसलिए तिलमिलाने लगी | ||
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साँस क्यों आस से सुर मिलाने लगी | साँस क्यों आस से सुर मिलाने लगी | ||
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प्यास क्यों त्रास से दूर जाने लगी। | प्यास क्यों त्रास से दूर जाने लगी। | ||
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शीष के ये खिले वृन्द मकरन्द के | शीष के ये खिले वृन्द मकरन्द के | ||
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लो चढ़ायें नगाधीश के नाथ को | लो चढ़ायें नगाधीश के नाथ को | ||
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द्रुत उठायें, चलायें, चढ़ायें, मगन | द्रुत उठायें, चलायें, चढ़ायें, मगन | ||
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हाथ में हाथ ले, माथ पर माथ को। | हाथ में हाथ ले, माथ पर माथ को। | ||
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19:51, 15 अप्रैल 2009 का अवतरण
साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा
क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई!
तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती
दूधिया चाँदनी साँवली हो गई!
खेल खेली खुली, मंजरी से मिली
यों कली बेकली की छटा हो गई
वृक्ष की बाँह से छाँह आई उतर
खेलते फूल पर वह घटा हो गई।
वृत्त लड़ियाँ बना, वे चटकती हुई
खूब चिड़ियाँ चली, शीश पै छा गई
वे बिना रूप वाली, रसीली, शुभा
नन्दिता, वन्दिता, वायु को भा गई।
चूँ चहक चुपचपाई फुदक फूल पर
क्या कहा वृक्ष ने, ये समा क्यों गई
बोलती वृन्त पर ये कहाँ सो गई
चुप रहीं तो भला प्यार को पा गई।
वह कहाँ बज उठी श्याम की बाँसुरी
बोल के झूलने झूल लहरा उठी
वह गगन, यह पवन, यह जलन, यह मिलन
नेह की डाल से रागिनी गा उठी!
ये शिखर, ये अँगुलियाँ उठीं भूमि की
क्या हुआ, किसलिए तिलमिलाने लगी
साँस क्यों आस से सुर मिलाने लगी
प्यास क्यों त्रास से दूर जाने लगी।
शीष के ये खिले वृन्द मकरन्द के
लो चढ़ायें नगाधीश के नाथ को
द्रुत उठायें, चलायें, चढ़ायें, मगन
हाथ में हाथ ले, माथ पर माथ को।