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साँस / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

आदमी और जानवर

हर एक प्राणी

लेता है साँस ,लेकिन

इनके अलावा

ऐसा बहुत कुछ है

इस नाशवान् दुनिया में

जो साँस लेता है

दिल बनकर धड़कता है ।

वह मकान

जो अब घर बन गया है,

इसकी धड़कन मैं सुन सकता हूँ ।

मेरा आँगन , मेरा बगीचा

साँस ही नहीं लेते

मुस्कराते भी हैं ।

मैं जब कई दिनों बाद लौटता हूँ

सबको उदास पाता हूँ

मुझे देखते ही ये सब

बिखेरने लगते हैं मुस्कान

जो तैर जाती है

हर कोने में ।

मुझे छू जाती है

इनकी सुगन्ध भरी साँसें

दिलकश मुस्कान ।