भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साईकिल / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:54, 20 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अम्मा, साईकिल दिलवा दो
पापा नहीं दिलाते हैं।
छोटा है तू, गिर जायेगा,
यह कह कर बहकाते हैं॥

रोज चलाते सौरभ भैया,
चोट् कही लग पाती है।
अम्मा, मैं नादान नहीं हूँ,
मुझे साइ्रकिल आती है॥

पापा की बिल्कुल मत सुनना,
बस मम्मी से बात करो।
घर आये साईकिल मेरी,
तुम ऐसे हालात करो॥

दादाजी से पैसे ले लो,
या उनसे ही मंगवाना।
देखो अम्मां, ना मत कहना,
मुझे नहीं खाना खाना॥