Changes

साखी / गुरु अंगद देव

20 bytes added, 04:42, 31 अक्टूबर 2009
|रचनाकार=अंगद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
रतना फेरी गुथली रतनी खोली आइ।
 
वखर तै वणजारिआ दूहा रही समाइ॥
 
जिन गुणु पलै नानका माणक वणजहि सेइ।
 
रतना सार न जागई अंधे वतहिं लोइ॥
 
जिसु पियारे सिउ नेहु तिसु आगै मरि चल्लिऐ।
 
ध्रिगु जीवण संसार ताकै पाछे जीवणा॥
 
जे सउ चंदा उगवहि, सूरज चढहि हजार।
 
एते चानण होदिऑं, गुर बिनु घोर अंधार॥
 
जो सिर साईं ना निवै, सो सिर दीजै डारि।
 
जिस पिंजर महिं विरह नहिं, सो पिंजर लै जारि॥
 
नानक चिंता मति करहु, चिंता तिसही हेइ।
 
जल महि जंत उपाइ अनु, तिन भी रोजी देइ॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits