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सागर क्या जाने कितनी है पीर हमारी आँखों में / डी. एम. मिश्र

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सागर क्या जाने कितनी है पीर हमारी आँखों में
हिमशिखरों से पूछो कितना नीर हमारी आँखों में

लाख करो कोशिश बचने की लेकिन क्या बच पाओगे
ज़हर बुझा कितना नोकीला तीर हमारी आँखों में

मर जायेंगे हाथ तुम्हारा हरगिज़ मगर न छोड़ेंगे
तुमने देखी राँझे वाली हीर हमारी आँखों में

सात जनम तक ऐसे ही बंधन में बाँधे रक्खेंगे
रेशम से मजबूत कहीं जंजीर हमारी आँखों में

जितने पत्थर बाकी हैं सब धीरे-धीरे पिघलेंगे
आने वाले कल की है तस्वीर हमारी आँखों में

हाथों में सारंगी होठों पर कबिरा की वाणी है
चक्कर रोज़ लगाता एक फ़कीर हमारी आँखों में