Last modified on 7 जून 2010, at 02:36

साथ-साथ / सुशील राकेश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:36, 7 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशील राकेश |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम्हारी खुशिय…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारी खुशियों ने पीछा करते हुए
मुझे डूबोया खुशियों में तुम्हारे
तुम साथ-साथ चले
और चल पड़ा नक्स-पा के साथ-साथ
तुमने चाहा दोस्त ! सदा मुस्कुराते रहो
तुम्हारा हर गम हमारा है
ठंडे ओंठों से निकला यह उवाच
मेरी बहुत-सी बातों में अपनापन दिखा
ऋतुचक्र के हर फूल खिलें
उम्र-दराज बाहों में
कांटों की भीड पर विश्वास न करना
पंख फैलाकर उन्हें समेट लूंगा
शब्द के हृदय में
गमकना
बरसना
लरजना
मुस्कुराना

इन्द्रधनुष नाप लेगा आकाश का रास्ता
जहां तुम्हारे आंखों की दीप्ति
मुझे अपना लेगी।