साथ मेरे अपने साए के सिवा कोई न था
अजनबी थे सब जहाँ में आशना कोई न था
सारे रिश्ते रेत की दीवार थे मौसक के फूल
बात का सच्चा यहाँ दिल का खरा कोई न था
जिन के धोखे थे मिसाली जिन की बातें निश्तर
सिर्फ़ हम मोहसिन थे उनके दूसरा कोई न था
ज़िंदगी की दौड़ में हर शख़्स था बे-आसरा
शोर-ए-बे-हँगामा में नग़मा-सारा कोई न था
इक शज़र ऐसा भी राह-ए-ज़ीस्त में ‘सरवत’ मिला
फूल तो शाखों पे थे पत्ता हरा कोई न था