Last modified on 14 जुलाई 2011, at 01:22

साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 14 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं
ख़ूब पर्दा है यह! जवाब नहीं

कैसे फिर से शुरू करें इसको
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं

क्यों दिये पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं

आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं

मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख़्वाब नहीं

मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं