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"साथ हरदम भी बेनकाब नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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साथ हरदम भी बेनकाब नहीं
 
खूब पर्दा है यह! जवाब नहीं  
 
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कैसे फिर से शुरू करें इसको  
 
कैसे फिर से शुरू करें इसको  
 
 
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं
 
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं
 
  
 
क्यों दिए पाँव उसके कूचे में  
 
क्यों दिए पाँव उसके कूचे में  
 
 
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
 
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
 
  
 
आपने की इनायतें तो बहुत
 
आपने की इनायतें तो बहुत
 
 
ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं
 
ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं
 
  
 
मुस्कुराने की बस है आदत भर
 
मुस्कुराने की बस है आदत भर
 
 
अब इन आँखों में कोई ख्वाब नहीं
 
अब इन आँखों में कोई ख्वाब नहीं
 
  
 
मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
 
मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
 
 
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं
 
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं
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21:53, 29 जून 2011 का अवतरण


साथ हरदम भी बेनकाब नहीं
खूब पर्दा है यह! जवाब नहीं

कैसे फिर से शुरू करें इसको
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं

क्यों दिए पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं

आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं

मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख्वाब नहीं

मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं