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साथ हरदम भी बेनकाब नहीं / गुलाब खंडेलवाल

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साथ हरदम भी बेनकाब नहीं

खूब पर्दा है यह! जवाब नहीं


कैसे फिर से शुरू करें इसको

ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं


क्यों दिए पाँव उसके कूचे में

नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं


आपने की इनायतें तो बहुत

ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं


मुस्कुराने की बस है आदत भर

अब इन आँखों में कोई ख्वाब नहीं


मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी

कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं