भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ / राखी सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:59, 4 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राखी सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैने जितनी पुकार लगाई
वे सब मुझ तक वापस लौट आई हैं
नितांत सन्नाटे में मैं उन्हें सुनती हूँ

मेरी अकेली ध्वनि
मुझसे छूटकर भी
मुझे अकेला नहीं छोड़ती

मैने साथ रहने की जितनी कल्पना की है
और तुमने दावे,
उन सबमे
अकेलेपन ने ही सम्पूर्णतः
साथ निभाया है।