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साधो को धौं कहँते आवा / जगजीवन

साधो को धौं कहँते आवा।
खात पियत को डोलत बोलत, अंत न का पावा॥
पानी पवन संग इक मेला, नहिं विवेक कहँ पावा।
केहिके मन को कहाँ बसत है, केइ यहु नाच नचावा॥
पय महँ घृत घृत महँ ज्यों बासा, न्यारा एक मिलावा।
घृत मन वास पास मनि तेहिमाँ, करि सो जुक्ति बिलगावा॥