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सान्ही कोना जब हररायल / सच्चिदानंद प्रेमी

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सान्ही कोना जब हररायल
का भीतर के हम बतलइयो
अधनधरके आज विदेसी-
तोरा से कौची का गइयो।
ओसरामें टूटल खटिया पर
बूढ़वा खाँस रहल हे,
सड़ल बड़ेरी झरल ओहारी
जर्जर बाँस बचल हे,
उजड़ल छानी माँगल खपड़ा
सूरत नास रहल हे
दुरगन्ह के मारे नाको दम
उख-विख प्रान पड़ल हे,
एकरो पर हरजाई तोरा, दरद न आवे तनियो थोड़ा
तो छाती चीर बेदर्दी अप्पन दुखड़ा तोरा का सुनइयो
अप्पन घर के लाज
तोरा से कौची हम गइयो।
जइसे तइसे ई जिनगी के, पलछिन काट रहल ही,
रिसते धउआ के पीवो ते अपने गार रहल ही,
छितरायल चिथड़ा के ऊपर मखमल साट रहल ही,
उजड़ल छानी छप्पर जइसन
रिस्ता पाट रहल ही फूटल टूटल
एतनो पर अब बोलऽ केतना - का दर से दूयो?
फूटल हँड़िया टूटल बेलना मनके हम कैसे मरमइयो?
टूटल पूता चुल्हा चाकी
अप्पन घर के लाज विदेसी तोहरा से केतना हम गइयो?
दोसरा के दुख में अब कोई आके हाँथ बँटाबे?
अन्धरायल ऊफन दरिया में अब नाव चलाबे?
अप्पन-अप्पन पड़ल हे सगरो दूसरा न गाज हे केकरो एतना बतलाबे।
ओइसन खोजऽ कहाँ से मिलतौ जे आके वे
मरलो परहौ कफन खसोटी-नोच रहल हे चोटी-बोटी
लाज धरम चौखट पर पसरल, कइसे वाहर डेग बढ़इयो?
अप्पन घर के लाज विदेसी
तोरा से कौची हम गइयो।
कइसे इनसे निपटे कैसे माथ मढ़े।