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साफ़ बातों में तो कुदूरत है / 'निज़ाम' रामपुरी

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साफ़ बातों में तो कुदूरत है
और लगावट से ज़ाहिर उल्फ़त है

ग़ैर से भी कभी तो बिगड़ेगी
रूठना तो तुम्हारी आदत है

आप के लुत्फ़ में तो शक ही नहीं
दिल को किस बात की शिकायत है

उस सितम-गर से शिकवा कैसे हो
और उल्टी मुझे निदामत है

बोले दिखला के आईना शब-ए-वस्ल
देखिए तो यही वो सूरत है

मौत को भी नज़र नहीं आता
ना-तवानी नहीं क़यामत है

कुछ कहा होगा उस ने भी क़ासिद
कुछ न कुछ तेरी भी शरारत है

कहो सब कुछ न रूठने की कहो
ये ही कहना तुम्हारा आफ़त है

वाह क्या तेरी शाएरी है ‘निज़ाम’
क्या फ़साहत है क्या बलाग़त है