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सामण आयो रंगलो कोई / हरियाणवी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सामण आयो रंगलो कोई आई रे हरियाली तीज !

सास म्हारी प्यारी, गजब कीमारी,

मोकै तौ खंडा दै पीहर को, म्हारी लाड सासुला, प्यारी !

नईं आया थारा नाईं बामण, न माँ-जाया वीर,

राजा की रानी, जहार की रानी,

तो कै आड़ै ई घड़ा देँ पालणो,

म्हारी लाड बहुरिया प्यारी !

बिगर बुलाय धन जाएगी, घट जाएगो आदर-भाव,

राजा की रानी, जहार की रानी,

तू आड़ै ई सामण मान, मेरी लाड बहुरिया प्यारी !

ऊँचै तै चढ़कै देख रइ, तोकै दिवर कहूँ कै जेठ ?

सुघड़ खाती कै, बगड़ खाती कै,

चन्नण को घड़ लियो पालनो, जामें झूले सरिहल रानी ।

अजी आठ खुराड़ा नौ जना, कोई दग-दग जाएँ बन को

राजा की रानी, जहार की रानी,

ऊँची पाल तलायो की, जिते खड़रिया चन्नण को पेड़ ।

खाती आता देख कें कोई रोया छाती पाड़

बिरछ को पौदा, चन्नण को पौदा

डाल-डाल म्हारी काट लै, रै मत काटे जड़ से पेड़ ।

पहलो खुराड़ो मारियो, कोई निकसी दूध की धार ।

राजा की रानी, जहार की रानी,

एकासे दूजो दियो, जासे निकसी खूना धार ।

हरी-हरी चुरियाँ, गोरी-गोरी बहियाँ, कुन पै कियो सिंगार ।

राजा की रानी, जहार की रानी,

थारो राजधन मर गयी, रै धरती माँ गयो समाय !


भावार्थ


--'रंग भरा सावन आ गया है, हरियाली तीज आ रही है, ओ मेरी प्यारी सास ! ओ गजब की मारी सास !

मुझे मायके भेज दो, ओ मेरी प्यारी लाडली सास !'

--'न कोई नाई या न कोई ब्राह्मण तुझे लेने के लिए आया है, न तेरा सगा (माँ-जाया) भाई ही आया है, ऒ

राजा की रानी ! ओ जहार की रानी ! मैं तेरे लिए यहीं पालना बनवा देती हूँ, ओ मेरी लाडली प्यारी बहू ।

बिना बुलाए जाने से तेरा आदर-भाव घट जाएगा, ओ राजा की रानी ! ओ जहार की रानी ! तू इसे ही सावन के

उपहार मान, ओ मेरी प्यारी, लाडली बहू !

--'मैं ऊँची अटारी पर चढ़कर देख रही हूँ, तुझे देवर कहूँ या जेठ । ओ बढ़ई के सुघड़ बेटे, ओ बढ़ई के बड़े

बेटे ! जाओ, और जाकर चन्दन का एक पालना बना लाओ, जिसमें सरिहल रानी झूला झूलेगी ।


अजी देखो न, आठ कुल्हाड़े लेकर नौ आदमी बड़ी तेज़ी से जंगल की ओर जा रहे हैं, ओ राजा की रानी ! ऒ

जहार की रानी ! तालाब के ऊँचे तट पर चन्दन का वह पेड़ खड़ा है । जब उसने बढ़ई को अपनी ओर आते देखा

तो वह छाती फाड़ कर रोने लगा । वह पौधे जैसा पेड़, वह चन्दन का नन्हा पेड़ ।


--'मेरी एक-एक डाल काट लो पर मुझे जड़ से मत काटो ।'


--'जब कुल्हाड़े का पहला वार उस पर हुआ तो दूध की एक धार निकली, ओ राजा की रानी ! ओ जहार की

रानी ! जब उस पर कुल्हाड़े के दूसरा वार पड़ा तो रक्त की धारा निकलने लगी । ये गोरी-गोरी बाहों में हरी-हरी

चूड़ियाँ क्यों पहनी है तूने, क्यों यह सिंगार किया है तूने, ओ राजा की रानी ! ओ जहार की रानी ! तेरा राजधन

तो मर गया, री ! धरती में समा गया वो ।'