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सामना पर्बतों से हुआ तो आँधियों को सँभलना पड़ा था / ओम प्रकाश नदीम

सामना पर्बतों से हुआ तो आँधियों को सँभलना पड़ा था
जिनकी रफ़्तार तूफ़ान सी थी उनको भी रुख़ बदलना पड़ा था

घर के आँगन में उतरा था सूरज सब लगे थे ख़ुशामद में उसकी
कौन परवाह करता दिये की देर तक उसको जलना पड़ा था

कुछ शरारों को पैदा किया था अपने हिस्सों को मैंने जला कर
बाद में उन शरारों के पीछे मुझको पूरा ही जलना पड़ा था

शाम के दिलफ़रेब आस्माँ में डूबना ही था सूरज को लेकिन
सुब्ह में वो कशिश थी क़ि उसको डूब कर फिर निकलना पड़ा था

नाम को उसके हासिल थी शोहरत और गुमनाम थी मेरी हस्ती
मर्तबा उसका पाने को मुझको उसके साँचे में ढलना पड़ा था