भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सामनु आयौ री! / शंकरलाल द्विवेदी

Kavita Kosh से
Rahul1735mini (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:07, 4 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सामनु आयौ री!

घिरत गगन, घन-सघन, निरखि सखि! सामनु आयौ री!
सामनु आयौ री!
निरखि सखि! सामनु आयौ री!
पीत-भीत, धरनी-हरिनी कौ, हिय हरिआयौ री!
मनौं मनभाबन पायौ री।
निरखि सखि! सामनु आयौ री!

चलति मरुत म्रिदु-मन्द,
पुलक मन-मानस में छहरी।
उड़त खद्योत दसहुँ दिसि, लागत-
पाबस के प्रहरी।।
कै दीपाबलि के दीपक-
धरि पंख, पबन-पसरे।
किंधौ बिलोकन अबनि,
देब-गन धरनी पै उतरे।।
बोलत-डोलत काग मुँडेरनि,
रिमझिम बरसतु मेह।
मनौं बियोगिनि बिरहा गाबति,
भिजबति अँसुवनि देह।।
उमगतु जल, सब थल, लखि सुन्दर समद लजायौ री!
निरखि सखि! सामनु आयौ री!