भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सामन आयौ अम्मा मेरी / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सामन आयौ अम्म मेरी सुहावनो जी,
एजी कोई सब सखि झूलति बाग।1।
चन्दन पटुली अम्मा बनवाय दे री,
एजी कोई रेशम डोरि मंगाय।2।
मैं भी झूलूँ अम्मा चंपाबाग में जी,
एजी कोई जाऊँ सहेलियन साथ।3।
इतनी सुनि के बोली माता मल्हनदे जी
एजी बेटी सुनले मेरी बात।4।
आल्हा-ऊदल बेटी घर हैं नहीं जी
एजी कोई जूझि गयौ मलिखान।5।
बारौ सौ भैया तेरौ ब्रह्माजीत है जी।
ऐजी कोई कौन झुलावे बेटी मेरी आज।6।
जो सुनि पावे बेटी पृथ्वीराज है री
एजी कोई कोपि चढ़ेंगे चौहान।7।
डोला तो लै जाय बेटी तेरौ बाग तेही,
एजी कोई बिगर जाय सब बात।8।
जो घर होते बेटी आल्हा ऊदल से जी
एजी तोय देते बाग झुलाय।9।
मानि कही तो बेटी घर झूलि ले री।
एजी कोई सामन लेउ मनाय।10।