Last modified on 19 मई 2019, at 00:18

सायकिल / अरुण देव

हवा भरो हवा भरो ट्यूब कहती है
चेन कहती है टाईट रखो नहीं तो हम काँटों से फिसल जाएँगे

घण्टी टन-टन कह रास्ता माँगती है
ब्रेक दुरुस्त रहें
जहाँ ज़रूरी हो लग जाएँ

हैण्डिल मुड़ जाए कलाइयों की तरह
सीट हो मुलायम

खड़-खड़ मतलब
तेल चुआवो ग्रीस लगाओ

सड़कों पर आज भी सबसे सुन्दर सवारी है सायकिल

इसमें ईधन आदमी का जलता है
धुँआ श्वासों का निकलता है

पीठ पर बस्ते लादे स्कूल को दौड़तीं हैं सायकिलें
कतार में खड़ी इन्तज़ार करती हैं चुपचाप छुट्टी की घण्टी का

वक़्त पर इस पर ताज़ी सब्जियां थैले में लदी चली आती हैं
अभी-अभी पिसा आटा टीन के कनस्तर में पीछे बैठा
गर्माहट देता हुआ चला आया है

बेवक़्त इस पर लद जाते हैं दो जने और

एक पैर पर तिरछी हुई सुस्ताती सायकिल की मुद्रा
बड़ी मोहक है