भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सारी दुनिया के आगे इकरार करते हो / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:18, 31 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशाद इलाही अंसारी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> सारी दुनि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारी दुनिया के आगे इकरार करते हो,
तुम आसमाँ के तारे से प्यार करते हो|

न छू सकते हो, न पकड़ सकते हो उसे
फ़िर भी क्यों नाखु़दा की तलाश करते हो।

जिस्म ही नहीं रुह भी जलाता है इश्क-ए-सफ़र
क्यों इन सुर्ख़रुह शोलों की प्यास रखते हो।

वो तो नहीं मिलता अक्सर जिसकी आरज़ू है"शम्स"
तपते हुये बंजरों में फ़सलों की आस रखते हो।



रचनाकाल: 19.07.2002