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सारे रंगों वाली लड़की-4 / भरत तिवारी

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सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो?

ज्वार चढ़ी लहरें
सीने में
नहीं उतरती अब नीचे
नहीं सूखती
भीगी पलकें
रुकें ना कम्पन बदन का
रह गई किनारे पर जो लहरें
वही हूँ मैं

सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो?

सूरज उतरा आँख में
डूबता जाता हूँ उसमें
आ रहा है अन्धेरा
लहरों के निशान
सूख निरा रेत होते

सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो?

समन्दर हो, जलपरी हो
मेरी हो
ले जाओ मुझे
जलपरी।