भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साल आया है नया / हुल्लड़ मुरादाबादी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 15 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हुल्लड़ मुरादाबादी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यार तू दाढ़ी बढ़ा ले, साल आया है नया
नाई के पैसे बचा ले, साल आया है नया

तेल कंघा पाउडर के खर्च कम हो जाएँगे
आज ही सर को घुटा ले, साल आया है नया

चाहता है हसीनों से तू अगर नजदीकियाँ
चाट का ठेला लगा ले, साल आया है नया

जो पुरानी चप्पलें हैं उन्हें मंदिरों पर छोड़ कर
कुछ नए जूते उठा ले, साल आया है नया

मैं अठन्नी दे रहा था तो भिखारी ने कहा
तू यहीं चादर बिछा ले, साल आया है नया

दो महीने बर्फ़ गिरने के बहाने चल गए
आज तो हुल्लड़ नहा ले, साल आया है नया

भूल जा शिकवे, शिकायत, ज़ख्म पिछले साल के
साथ मेरे मुस्कुरा ले, साल आया है नया

दौड़ में यश और धन की जब पसीना आए तो
'सब्र' साबुन से नहा ले, साल आया है नया

मौत से तेरी मिलेगी, फैमिली को फ़ायदा
आज ही बीमा करा ले, साल आया है नया