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सावनी उजास / महेश उपाध्याय

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हाथों में फूल ले कपास के
स्वर झूले सावनी उजास के

पागल-सी चल पड़ी हवाएँ
मन्द कभी तेज़
झूल रही दूर तक दिशाएँ
यादों की चाँदनी सहेज

झीनी बौछार में नहाए
फिर नंगे खेत
सरिता के आस-पास के
स्वर झूमे सावनी उजास के ।