भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावन के बादल / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ सावन के बादल आओ
स्वागत साज सजायेंगे।

उमड़ घुमड़ कर बरसों रे तुम
हम मल्हारें गायेंगे।

बरसेगा अब जल आंगन में,
हम सब खूब नहायेंगे।

कागज की एक नाव बनाकर
हम उसमें तैरायेंगे।

बोल उठेंगे झिल्ली मेंढक
हम भी शोर मचायेंगे।

नाचेंगे सब मोर खुशी से
मन-आन्नद मनायेंगे।

किसी नीम की मोती डाली
झुला भी डलवायेंगे।

ऊँची ऊँची पेंगे लेकर
आसमान छू आयेंगे।