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सावन में मासें हो / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

सावनमें मासें हो, सावनमें मासें कि सावनमें मासें
बहै पुरवैया, सावनमें मासें
मौसम तेॅ ठंडा, बरसा नै हुऐ
कि कैसें होतै?
किसनमां के रोपा कैसें होतै?
रोपा नै होतै, अकाल पड़ी जैतै
कि मची जैतै
गाँवोॅ में हाहाकार मची जैतै।
सुनी चिल्लाहट नेतागण दौड़तै
कि की देतै?
चूड़ा, गुड़, तेल साबुन, नमक छींटतै
ई मौका अफसर केॅ बड्डी फबतै
कि की करतै?
कि आधा-आधा राहत माल घोॅर भेजतै।