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सासु मोर बेनिया डोलावहऽ, कमर भल जाँतहऽ हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सासु मोर बेनिया डोलावहऽ,<ref>डुलाती है</ref> कमर भल जाँतहऽ<ref> जाँचती है, दबाती है</ref> हे।
अहो लाल, देहरी<ref>घर का द्वार</ref> बइठल तू ननदिया बिरह बोलिय<ref>बोली</ref> बोलए हे॥1॥
मोरी भौजी रखिहऽ<ref>रखना</ref> पलंगिया के लाज त बेटवा बिअइह<ref>ब्याना, जनना, प्रसव करना</ref> हे॥2॥
तुहुँ त<ref>तो</ref> हहु<ref>है</ref> मोरा ननदी, अउरो सिर साहेब हे।
ननद, पियवा के आनि<ref>लाओ</ref> बोलावह, पलंगिया डँसायब<ref>बिछाऊँगी</ref> हे॥3॥
किया<ref>क्या</ref> तोर भउजो<ref>भाभी</ref> हे नाउन, किया घरबारिन<ref>घर का काम-काज सँभालनेवाली</ref> हे।
मोर भउजो, किया तोरा बाप के चेरिया, कवुन<ref>किस, कौन</ref> दाबे<ref>दावे से, अधिकारवश</ref> बोलह हे॥4॥
नहीं मोर ननद तू नाउन, नहीं घरबारिन हे।
नहीं मोर बाप के चेरिया, बलम<ref>पति</ref> दाबे बोलली<ref>बोली थी, जो कुछ कहा</ref> हे।
ननद, तुहुँ मोरा लहुरी<ref>लाड़ली, रसिक</ref> ननदिया सेहे<ref>उसी</ref> रे दावे बोलली हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>