भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सासू बी बहरी सुसरा भी बहरा / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सासू बी बहरी सुसरा भी बहरा बहरा सै घर वाला रै
उन बहरां मैं मैं बी बहरी चारूआं का बाजा न्यारा रै
एक राहे बटेऊ न्यूं उठ बोल्या टेसन की राही बता दे रै
धोले के तो लगे पानसै गौरे के ढाई से दे सैं रै
इतणै मैं रुटिहारी आई बलदां का मोल लगै सै रै
नूण मिरच तेरी मां नै गैर्या हम नै क्यूं गाली दै सै रै
रोटी दे कै घर नरै आई सासू तै राड़ मिचाई रै
नूण मिरच तै तन्नै गेर्या मन्नै गाली दिवाई री
हमनै तै बहू बेरा कोन्नी तेरै सुसरै नै पूछूंगी
डांगर चरा के सुसरा आया बहू पीहर जाण नै कह सै रै
कौण कहे कालर में चरा ल्याया डहरां में चर कै आई सै
सासू बी बहरी सुसरा बी बहरा, बहरा सै घर वाला रै