Last modified on 26 फ़रवरी 2016, at 19:40

साहिलों पर उदासी रही / गौतम राजरिशी

Gautam rajrishi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 26 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह=पाल ले इक रो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साहिलों पर उदासी रही
इक नदी फिर से प्यासी रही

रात ने नींद पहनी मगर
ख़्वाब की बेलिबासी रही

हुस्न तो खिलखिलाता रहा
इश्क़ पर बदहवासी रही

आज फिर कुछ न कह पाये हम
आज फिर बात बासी रही

कम न हो लम्स की आँच ये
बर्फ बस अब ज़रा-सी रही

जिस्म मंदिर हुआ सो हुआ
रूह तो देवदासी रही

क्यों चमन को भला दोष दें
जब हवा ही सियासी रही

मौत पर किसलिए रोयें हम
ज़िंदगी अच्छी-ख़ासी रही




(अलाव जून 2013 )