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सिज जी उस में किथे तपिजी न वञो / एम. कमल
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सिज जी उस में किथे तपिजी न वञो।
वहम जी छांव में को पलु भी विहो॥
शहर जो गोडु़ रॻुनि में थो डुके।
गोड़ जो शहरु थी वयो जिस्मु सॼो॥
रात जा खु़श्कु थधा चप फड़िकिया।
कोई भुणि-भुणि में थी क़त्ल वयो॥
सॾ असां जा ऐं ख़ामोशी तुंहिंजी।
हीउ फ़सानो भी किथे लिखिजे पयो॥
आ फ़सादनि जो अॾो शहर जो चींकु।
इन ते लीडर जो कोई नाउं रखो॥