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सिदुवा / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तिन मथुरा मा जनम लीने, विष्णु मेरा करतार,
तिन देवकी का गर्भ लीने, मेरा अवतार।
तुम द्वारिका का धनी होला, मथुरा का ग्वैर<ref>ग्वाला</ref>
गायों का गोपाल होला, गोप्यों का मोहन।
तुम तै प्यारी होली, मधुवन की कुँज स्ये,
तुम तैं प्यारा होला, जमुना का त छाला<ref>किनारा</ref>।
तब सुपिना मा देखे कृष्ण गगू की रमोली,
रौंत्याली रमोली<ref>रमणीय</ref> होलि, तौं ऊँचो डाँडयों<ref>पहाड़ियों पर</ref> मा।
बाँज की वणीई<ref>जंगल</ref> होली, तख होली कुलाई<ref>चीड़</ref>,
अनमन भाँति का फूल, अनमनभाँति की वासिना<ref>सुगन्ध</ref>!
दूरू फैल्याँ सौड़<ref>मैदान</ref> होला, होलो ऊँचो शतरंज<ref>शतरंग, शिखर</ref>!
देखे भगवानन बाँकी रमोली लागे मन!
तब इनाबैन बोदा साँवल भगीवान्-
हे गंगू रमोला, मैं तेरी रमोली औंदू।
द्वारिका नारैण छौं, मैं तेरो कुलदेव,
जगा दियाल मैं, तेरी रमोली लग्यो मन।
मैं नी माणदू कै सणी<ref>किसी को भी</ref>, देवता सुण्याल<ref>सुन ले</ref>,
गंगू रमोलो छऊँ मैं, मेरा अग्वाड़ी<ref>आगे</ref> क्वी नी!
समझलू देवता त्वै, नितर रिङ्वा<ref>घुमन्तू</ref>,
जु रागसीण मारी देलो, सेम छ वींको वासो।
मैन हरणाकंस मारे, मैन असुर संहारया,
रागसीण मारणी गंगू, मेरा अग्वाड़ी क्या छ?

कला पूरा छयो कृष्ण, जसीलो देवता
मारी दिन रागसीण, चीरे चारी दिशौं मा।
तब तई सेम मुखम, तेरा बजदा घाँड,
दस घड़ी सजा<ref>संध्या</ref> होन्दी, बीस घड़ी की पूजा।
सिदुवा लिजाँद डौरू-थाली,
कृष्ण लिजाँद शंख।
चलदऊ सिदुवा जौला<ref>जायेंगे</ref>, पंडौऊ<ref>जायेंगे</ref> की जैन्ती<ref>राज्य</ref>।
रौड़दा-दौड़दा गैन, तब खैट की खाल<ref>चोटी</ref>।
खैट की खाल गैन, चौपता चौराड़ी।
चौपता चौराड़ी गेन, कोंकू<ref>कुंकुम</ref> डाली छैलू<ref>छाया</ref>।
तब कृष्ण भगीवान, कना बैन बोदान:
कंूकू डाली नीस सिदुवा, छम धड्याली<ref>डमरू थाली बजाना</ref> लौला।
तब अनमन भाँति की, तौन धड्याली लगाये।
खैट की आछरी<ref>अप्सराएँ</ref> तब देव्यो, कना बैन बोदीन,
खैट कीखाल देव्यों, कू होलू धड्याल्या?
चला दीदी भुल्यों, धड्याला भू जौला।
आज की धड्याली सूणी, मन ह्वैगे मोहित,
चित होइगे चंचल।
तब निकलीन भैर<ref>बाहर</ref>, आछरियों की टोली-
अगास की गैणी छै वो, धरती की चाँदना।
रूप की जोत छई, कांठ्यों को उद्यौऊ।
धाड थाला मू जैक, देव्यों रास रचीयाले,
अनमन भाँति को, लगे रास मंडल।
रूप की छलार पड़े, शीशू चमलाणी।
सिदुवा बजौंद डौंरू थाली,
कृष्ण करद अनमन, भाँति को नाच

शब्दार्थ
<references/>