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सियासत की है / आनन्द किशोर

दिल के ज़ज़्बों को जगाकर के तिजारत की है
उसने अश्क़ों की कई बार सियासत की है

बेटियाँ , औरतें , बेघर या ग़रीबों के लिए
सिर्फ़ जुमलों को अदा करने की ज़हमत की है

क्लास दोयम के जो लोग हैं उनकी ख़ातिर
टैक्स पर टैक्स लगाने की भी ज़ुर्रत की है

दे दिया सबको भरोसा भी दिनों का अच्छे
कैसी तरकीब से लोगों की फ़ज़ीहत की है

जिनको रोटी न मयस्सर है किसी भी सूरत
उन ग़रीबों को दिया योग , हिमाक़त की है

अब तो कानून में बीवी को मिली आज़ादी
बाद शादी के करो कुछ भी, इजाज़त की है

दो जने साथ में , बालिग हैं तो सो सकते हैं
कैसे कुदरत से अलग जा के बग़ावत की है

दौरे हाज़िर में गिना करते हैं वोटों को फ़क़त
किसने "आनन्द' कोई और सियासत की है