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सिर्फ़ एक बार और आ जाओ / सपफ़ो / नीता पोरवाल

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इन्द्रधनुषी सिंहासन पर आसीन,
ऐ प्रेम की देवी !

मैं उस अजर-अमर ज़ेउस की सन्तान,
छल-कपट करने में चतुर,
दुखों और उत्पीडन से चूर- चूर होकर
तुमसे हठ नही अपितु विनती करता हूँ

और यदि आज से पहले भी तुमने
मेरी ऐसी कोई पुकार सुनी हो
तो लौट जाना वापस
जैसे कि एक बार पहले भी तुमने
अपने पिता का सुनहला महल त्याग दिया था,
घूमते वक़्त चिड़ियों की सी आवाज़ करता
अपना चमचमाता रथ जोत लिया था,

आकाश के फेनिल शुभ्र रास्तों से होते हुए तब
तुम्हें पृथ्वी के धूसर आँचल पर उतारा गया था
ऐ देवी ! तब तुम अपनी अलौकिक कान्ति लिए
हमारे सामने एकाएक अवतरित हुईं थीं,
 
तुम्हारी मुस्कान देखकर
मलिन चेहरे भी जगमगा उठे थे,
तब तुमने मुझसे पूछा था कि मेरे दुख क्या हैं
और मेरी पीड़ा का कारण क्या है,
वो क्या है जो मेरे व्यग्र मन को शान्त कर देगा
 
और यह भी
कि मैने तुम्हें पुकारा क्यों था

मेरी ओर से :
फ़िर आवेश में उठी
इस टीस को कम करने के लिए
मैं इन पलों में अब किसे पुकारूँ ?
किसने तुम्हें भला बुरा कहा , देवी सपफ़ो
और कौन तुम्हारे साथ क्रूरता से पेश आया?

आज जब वह बहुत दूर चली गई है
लेकिन जल्द ही तुम्हें तलाश लेगी वह
और अस्वीकार किए गए उपहारों से
कहीं अधिक तुम पर नेमतों की बारिश करेगी

बेशक वह तुम्हें आज पसन्द नही करती , लेकिन
उसका दिल धड़केगा अवश्य, न चाहते हुए भी।
मेरी पुकार सुनकर सिर्फ़ एक बार और आ जाओ,
और मेरे दुःख और मेरे दिमाग की
अवांछित चिन्ताओं को खत्म कर दो,
मुझे वही दो जिसकी मुझे लालसा है

मेरे सभी संघर्षों में
एक सहयोगी की तरह शामिल हो!

अँग्रेज़ी से अनुवाद : नीता पोरवाल