भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीखो आँखें पढ़ना साहिब / गौतम राजरिशी

Kavita Kosh से
Gautam rajrishi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 27 फ़रवरी 2011 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्क़िल वरना साहिब

सम्भल कर तुम दोष लगाना
उसने खद्‍दर पहना साहिब

तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हठ ना साहिब

दीवारें किलकारी मारे
घर में झूले पलना साहिब

पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब

सब को दूर सुहाना लागे
क्यूँ ढोलों का बजना साहिब

कितनी कयनातें ठहरा दे
उस आँचल का ढलना साहिब

{द्विमासिक आधारशिला, जनवरी-फरवरी 2009}