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सीढ़ियों पर साँझ / ओम निश्चल

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सीढ़ियों पर सॉंझ
मन में धूप
जल में पाँव।
कहाँ ले आए
पिया तुम आज फिर इस ठाँव।

यह खुला एकान्त मन को ठौर
बरसों बाद
चित्त में ठहरी हुई है
अजनबी-सी याद

पर्वतों के पार कोई टेरता है
बुलाती निस्संग कोई छॉंव।

सीढ़ियों पर साँझ
मन में धूप
जल में पॉंव।
कहॉं ले आए
पिया तुम आज फिर इस ठॉंव।

यह छटा अनुपम कि
कैसे भूल जाऍं
साँप सी गलियॉं
सुहानी उपत्यकाऍं

सूझती है तुम्हें तो बस चुहल
हर पल
बस जरा-सी दूर पर है गॉंव।
सीढ़ियों पर साँझ
मन में धूप
जल में पॉंव।
कहॉं ले आए
पिया तुम आज फिर इस ठॉंव।

यहीं है चान्दी सुबह की
सॉंझ का सोना
यहीं है अनुराग का
छूटा हुआ कोना

यहीं आकर पूछता कोई
क्या यही है ओम जी का गॉंव?

सीढ़ियों पर सॉझ
मन में धूप
जल में पॉंव।
कहॉं ले आए
पिया तुम आज फिर इस ठॉंव।