Changes

{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
करता है बसर सीने में जादू-बसर करता है ख़ुशबू सा कोई शख़्स, फूलों-सा कभी और कभी चाकू सा कोई शख़्स।
पहले तो सुलगता है वो लोबान के जैसे,
फिर मुझमें बिखर जाता है ख़ुशब ख़ुशबू सा कोई शख़्स।
मुद्दत से मिरी आँखें उसी को हैं संभाले,
बहता नहीं अटका हुआ आँसू सा कोई शख़्स।
ख़्वाबों के दरीचों में वो माजी यादों की हवा से,
लहराता है उलझे हुए गेसू सा कोई शख़्स।
98
edits