सुन्दर बनाते हैं दिन को
जवान नदी के नितम्ब
धूप में खुले पाषाणी
चिकने सुडौल
देखता हूँ जिनको मैं
घंटों सहलाता हूँ
जिनको मैं।
रचनाकाल: ०९-०१-१९६१
सुन्दर बनाते हैं दिन को
जवान नदी के नितम्ब
धूप में खुले पाषाणी
चिकने सुडौल
देखता हूँ जिनको मैं
घंटों सहलाता हूँ
जिनको मैं।
रचनाकाल: ०९-०१-१९६१