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सुंदर बानी कहि समुझावै / भारतेंदु हरिश्चंद्र

सुंदर बानी कहि समुझावै ।
बिधवागन सों नेह बढ़ावै ।
दयानिधान परम गुन-आगर ।
सखि सज्जन नहिं विद्यासागर ।