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सुख-दुख के सम्मिश्रण से ही / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

सुख-दुख के सम्मिश्रण से ही
जीवन का निर्माण हुआ है
दुख का भी गहरा कटु अनुभव
होता ही रहता है अभिनव
और मधुर क्षण का टिकना ही
रहता है सर्वथा असम्भव
इसीलिये सन्दिग्ध हृदय ले
मानव व्याकुल प्राण हुआ है
सुख के मीठे सपने पलते
हम जिस पर दिन रात मचलते,
किन्तु मचलना रूक जाता है
जीवन रवि के ढलते ढलते
कहो आज तक पंकिल मग में
किसका इससे त्राण हुआ है
दुख की मंजिल पर करो तो
सुखमय यह संसार करो तो
दलितो को उल्लसित बनाने
का अभिनव व्यापार करो तो
इस मंगलमय पथ पर मेरा
निठुर साहसी बढ़ चल, बढ़ चल
चलना और मचलना दोनो
रहे साथ जीवन में प्रतिपल
इस लघु जीवन से भी अबतक
भूतल का कल्याण हुआ है