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सुख तो हम तक न आए कभी / जहीर कुरैशी

सुख तो हम तक न आए कभी
दु:ख हमें छू न पाए कभी

जो न आए बुलाने के बाद
आ गए बिन बुलाए कभी

धूप की साँस घुटने लगी
मेघ ऐसे भी छाए कभी

हमसे मिलते ही मुस्काए वो
जो नहीं मुस्कुराए कभी

जिनसे रिश्ते बने ही नहीं
उनसे रिश्ते निभाए कभी

आ गए काम एकान्त में
अश्रु थे जो बचाए कभी

जिनकी हमसे न उम्मीद थी
काम वो कर दिखाए कभी