भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुगवा पिंजरवा छोरि भागा / कबीर

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:04, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngikaRachna}} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुगवा पिंजरवा छोरि भागा।टेक॥
इस पिंजरे में दस दरवाजा,
दसो दरवाजे किवरवा लागा॥1॥
अँखियन सेती नीर बहन लाग्यो,
अब कस नाहिं तू बोलत अभागा॥2॥
कहत कबीर सुनो भाइ साधो,
उड़िगे हंस टूटि गयो तागा॥3॥