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'''पुकारता है घर मेरा''' लेखक एंव योगदान '''प्रवीण परिहार'''
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इतने दिनों तक घर से दुर रहने के बाद घर की बहुत याद आती है। घरवालें, दोस्त, त्यौहार सभी कुछ।
सभी पुकार-पुकार कर यहीं कहते है "अब तो आजा"।
 
'''पुकारता है घर मेरा'''
 
पुकारता है घर मेरा
कहता है अब तो आजा।
 
वो रास्ते वो हर गली,
वो हर दर वो दरवाजा,
करते है सब तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
 
फाल्गुन की देखो होली,
उडधंग मचाती टोली,
होली के सारे रंग,
सब दोस्तो के संग,
करते है सब तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
 
प्यारी सी मेरी बहना,
उसका भी है ये कहना,
मेरे प्यारे भईया राजा,
इस राखी पे घर को आजा,
मेरी बहना और उसकी राखी,
दोनो करती है यूँ तकाजा,
कहती हैं अब तो आजा।
 
प्यारी सी मेरी मईयाँ,
बनाती है जब सैवईयाँ,
कहती है जल्दी आजा,
जल्दी से आ के खाजा,
वो खीर वो पताशा,
करते है सब तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
 
मेरी भाँज़ी और भाँज़ें,
सब उडधंग में है साँज़े,
कहते है देखो - मामा,
जल्दी से घर को आना,
और तोहफे हमारे लाना,
वो सब मुस्कुराकर ऐसे,
करते है यूँ तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
 
लेखक एंव योगदान
'''प्रवीण परिहार'''
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