भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुण बात म्हारी / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:32, 15 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

औ कांई हुयग्यो
उडग्या थारा तोता
साच साम्हीं आवतां ई
इयां ईज हुवै
झूठ अर चोर रा पग
काचा हुया करै
साच चुप रैवै
हाको नीं करै
धोळो धक हुय जावै
कूकतो-कूकतो झूठ
नीं ठाह पड़ै तो
काच देख कदैई।