भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:36, 23 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम
बाज़ आये उनके प्यार की ऐसी 'नहीं' से हम

अबकी न ज़िन्दगी को परखने में होगी भूल
फिर से शुरू करेंगे कहानी वहीं से हम

कहते हैं जिसको प्यार, ख़ुमारी थी नींद की
सपना चुराके लाये थे कोई कहीं से हम

जाओ जहाँ भी सुख से रहो, हमको भूलकर
धारा है तेज, लौट रहे हैं यहीं से हम

इतने चुभे हैं प्यार में काँटें गुलाब को
उठती है हूक जब भी झुकाते कहीं से हम