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सुनसान शहर / विजयदेव नारायण साही

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मैं बरसों इस नगर की सड़कों पर आवारा फिरा हूँ
वहाँ भी जहाँ
शीशे की तरह
सन्नाटा चटकता है
और आसमान से मरी हुई बत्तखें गिरती हैं ।