भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो कवि! / श्वेता राय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्वेता राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो कवि! अब प्यार लिखो तुम, भावों का संसार लिखो।
सहला जाये जो तन मन को, मान लिखो मनुहार लिखो।

लिखो नदी क्यों बहती कलकल, कोयल कैसे गाती है।
कैसे करते शोर पखेरू, भोर किरण जब आती है।
बहका सहका मन क्यों होता, ऋतुओं के इतराने से,
क्यों खिलती हैं कलियाँ सारी, भ्रमरों के मुस्काने से।

छुअन लिखो तुम पुरवा वाली, बहती मस्त बयार लिखो।
सुनो कवि! अब प्यार लिखो तुम, भावों का संसार लिखो।

शब्दों में तुम लिखो खिलौने, रंग भावना का लिख दो।
बालू मिट्टी से रचने का, ढंग अल्पना का लिख दो॥
लिख दो बच्चे क्यों रोते हैं, माँ का आँचल पाने को।
क्यों जगती सबकी तरुणाई, अम्बर में छा जाने को॥

करता है जो जड़ को चेतन, ऐसी मस्त फुहार लिखो।
सुनो कवि! अब प्यार लिखो तुम, भावों का संसार लिखो॥

लिखो चाँदनी कैसे आकर, सोये ख्वाब जगाती है।
कैसे काली नीरव रजनी, मन को भय दिखलाती है॥
कैसे होती रात सुहावन, धड़कन सरगम बनती हैं।
संझा को अंतस में आकर, सुधियाँ कैसे ठनती है॥

मकरागति सूरज को कर के, आती मस्त बहार लिखो।
सुनो कवि! अब प्यार लिखो तुम, भावों का संसार लिखो॥