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सुनो ना! आँख से काँटा निकालो / दीपक शर्मा 'दीप'

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सुनो ना! आँख से काँटा निकालो
अरे क्या बोलते हो क्या निकालो?

छुपाकर के रखा है आज तक जो
नहीं निकला चलो सारा निकालो!

हमारी दिलरुबा का ब्याह कल है
ज़रा-सा मस्त-सा लँहगा निकालो

मुख़ालिफ़ तुम हमें क्या मात दोगे
चलो!के इस तरफ़ घोड़ा निकालो

चलाने पर अगर हथियार मुझ पर
तुम्हें ख़ुशियां मिलें गोया!निकालो

पकड़ कर के ग़मी को गुदगुदाओ
ख़ुशी की पीठ से मुक्का निकालो

अभी होता नहीं बरदाश्त, दिल से
किसी के ख़्वाब का मुर्दा निकालो

नहीं दोगे सुकूँ? अच्छा चलो फिर
नमाज़ो-हज,वुजू,सजदा निकालो!

ख़फ़ा को चुप करा दो दीप थोड़ा
वफ़ा का हाँ कोई किस्सा निकालो