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सुबह का झरना हमेशा हंसने वाली औरतें / बशीर बद्र

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सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़ामोश गहरी औरतें

संतुलित कर देती हैं ये सर्द मौसम का मिज़ाज
बर्फ़ के टीलों पे चढ़ती धूप जैसी औरतें

सब्ज़ नारंगी सुनहरी खट्टी मीठी लड़कियां
भारी ज़िस्मों वाली टपके आम जैसी औरतें

सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिन
लाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती औरतें

शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें

सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी
धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें

इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का ज्वालामुखी
किन पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें

सब्ज़ सोने के पहाड़ों पर क़तार अन्दर क़तार
सर से सर जोड़े खड़ी हैं लाम्बी लाम्बी औरतें

इक ग़ज़ल में सैकड़ों अफ़साने नज़्में और गीत
इस सराय में छुपी है कैसी कैसी औरतें

वाकई दोनों बहुत मज़्लूम हैं नक़्क़द और
माँ कहे जाने की हसरत में सुलगती औरतें