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सुबह का नग्मा / नाज़िम हिक़मत

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सुनो !
आसमान में तीन दरवाज़ें हैं सुबह के
एक है उनमें से उम्मीद
उसे हासिल करो और बच्चे के हवाले करो
उसी के साथ उसे बड़ा होने दो
लम्बा-तड़ंगा होने दो, लम्बे डग भरने दो

सुनो ! सुनो !
आसमान में तीन दरवाज़े हैं सुबह के
उनमें से एक है रोज़ की रोटी
तुम्हारे हाथों में दमकती हुई
उसे दमकता रहने दो और मुहिम को तेज़ करो

सुनो, मैं कहती हूँ, सुनो !
आसमान तलक तीन दरवाज़े हैं सुबह के
उनमें एक है ख़ौफ़
उसे बन्द करा दो !
रोटी तुम्हारी है, उम्मीद तुम्हारी है
फिर ख़ौफ़ की, भला, क्या औक़ात
अगर हाथों की अगले हाथों तक रसाई है ?
(सन्नूर सजर १९४४)

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल